आशीर्वाद की शक्ति

धन के लिए प्रदान की जाने वाली आस्तिकता के समान धन लेकर 44 प्रदान की जाने वाली नास्तिकता निंदनीय है। नास्तिकता के लिए अब गलत व्याख्या दी जा रही है। गलत ढंग से देखे जाने वाले रीति-रिवाजों से परे जो यथार्थ स्थिति है उसे समझना ही नास्तिकता है। वही युक्तिवाद है। सारे ही सिद्ध योगी युक्तिवादी हैं। पत्थर में भगवान नहीं है, यों घोषणा करने मात्र से कोई युक्तिवादी नहीं बन सकता । युक्तिवाद से रहित अध्यात्म व्यर्थ है । अध्यात्म से रहित युक्तिवाद भी भयानक है।"


स्वामीजी का और एक महत्वपूर्ण उपदेश है शुभकामना देना । स्वामीजी स्वयं पूरे विश्व को निरंतर शुभकामना देते रहे, साथ ही उपदेश देते हैं कि हम भी लगातार शुभकामना देते रहें। दूसरों को दोष देने और गाली देने के आदी हमारे लिए शुभकामना देना नई चीज़ ही है। लेकिन शांति और आनंद स्तुत्य हैं। जब तक मन शांतिपूर्ण स्थिति में नहीं आता, तब तक हम शुभकामना दे ही नहीं सकते। अभ्यास और आदत से मन में शांति आ जाती है। हम जिन्हें शुभकामना देते हैं, उनका मन भी शीतल होता है और शांति छा जाती है। दोनों के बीच में स्नेह-सौहार्द पनपता है । स्वामीजी पहले स्वयं को शुभकामना देने का उपदेश देते हैं। व्यक्ति के अंदर ही द्वंद्व चलता रहता है, परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ कार्यरत रहती हैं। खुद को शुभकामना देने से नकारात्मक विचार धीरे-धीरे मिटकर सकारात्मक विचार आत्म परामर्श के रूप में दृढ़ होते रहते हैं। स्वयं को शुभकामना दे लेने के बाद जीवन-साथी को शुभकामना देने की सलाह देते हैं। इस जगत में यदि कोई अत्यंत घनिष्ठता से रहता है वह पत्नी या पति ही है। उसी समय जो सबसे ज़्यादा मनभेद रखने वाले कौन हैं इसकी खोज करें तो वह भी पति या पत्नी ही हैं ।


यह मतभेद कभी कहासुनी के रूप में और कभी मारधाड़ के रूप में तो कभी अप्रतीक्षित दुर्घटना के रूप में बदलता है। मेरे गुरुनाथ कहते हैं कि जीवन-साथियों के लिए हमेशा एक दूसरे को शुभकामना देते रहना आवश्यक है। किसी व्यक्ति ने स्वामीजी के पास गुहार किया कि अपनी पत्नी ही उनके लिए सबसे बड़ी बला है। स्वामीजी ने उन्हें यही मंत्र सिखाया । एक महीने के बाद उन्होंने स्वामीजी के पास आकर बड़ी खुशी से कहा, 'स्वामीजी, इस आश्चर्य से मैं चकित हो गया हूँ, मेरी पत्नी बदल गई है।'


स्वामीजी ने पूछा, 'ठीक है, आपने कैसे शुभकामना दी ?' उन्होंने जवाब दिया, 'आपने एक ही जगह शुभकामना देने को कहा था। मैंने तीन जगहों में उसे शुभकामना दी । जीवन साथी के स्थान पर शुभकामना दी प्रबंधक के स्थान पर शुभकामना दी और बुराई करने वाले या दुश्मन के रू में मानने के स्थान पर भी शुभकामना दी।' बच्चे बारह साल की उम्र तक हमारी बात मानते हैं। उसके बाद वर्तमान परिस्थिति में गहरे मतभेद उ रहते हैं। हम खींचते रहते हैं, मगर वे अपने ख्यालों में तिरते रहते हैं। दो के बीच हमेशा टकराहट होती है। दोनों के बीच स्नेह का माहौल बनने लिए शुभकामना बड़ी हद तक सहायक होती है।"






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